Monday, September 26, 2011

Q. सबसे ऊँचा पद क्या है?
A. सबसे ऊँचे में ऊँचा पद है आत्म पद| इस पद से बड़ा पद पूरे  ब्रह्माण्ड में दूसरा कोई नहीं है| बापूजी भी हमें यही पद देना चाहते हैं| आत्मपद में स्थिति हो जाने के बाद ज्ञानी को ब्रह्मा, विष्णु, महेश का पद भी तिनके के समान भासता है|

Q. सबसे ऊँचा(बड़ा) सुख क्या है?
A. सबसे ऊँचा सुख है आत्म साक्षात्कार के बाद ब्राह्मी स्थिति/आत्म पद में स्थिति का सुख| चाहे बाह्य(बाहर) जगत में प्रलय ही क्यों ना हो जाय, आत्म पद में स्तिथ ज्ञानवान को उससे शोक नहीं होता| सेठों से कई गुना सुख राजाओं को होता है, राजाओं से १०० गुना सुख चक्रवर्ती राजा को (पूरी पृथ्वी का राजा) होता है, चक्रवर्ती से १०० गुना सुख गन्धर्वों को होता है, गन्धर्वों से १०० गुना सुख देवताओं को होता है, देवताओं से १०० गुना सुख देवताओं के राजा इन्द्र को होता है, ऐसा इन्द्र भी अपने आपको ब्रह्मज्ञानी के आगे छोटा मानता है (एकान्तवासी वीतराग मुनि को जो सुख मिलता है वह सुख न इन्द्र को और न चक्रवर्ती राजाओं को मिलता है - गुरुगीता न. 89)|

प्रचेताओं (राजा पृथु के प्रपौत्र प्राचीनबर्हि के १० पुत्र) की तपस्या/स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रगट हो प्रचेताओं को दर्शन दिए और वर मांगने को कहा| तब प्रचेताओं ने कहा-भगवान हम मांगने में गलती कर सकते हैं|  आप जो ठीक समझें वही दें | तब भगवान ने  उनके ह्रदय में से माया को हटा दिया और उनके ह्रदय में ब्रह्मज्ञान प्रगट कर दिया| अब आप ही सोचिये अगर इससे ऊँचा भी कुछ होता तो भगवान उन्हें वो न देते? प्रत्येक मनुष्य की मांग है,ऐसा सुख जो कभी न मिटे| तो भगवान ने ऐसा कुछ बनाया भी तो होगा| वह सुख किसी पदार्थ में नहीं, आत्मज्ञान में है जो भगवान ने प्रचेताओं को कराया| एक बार आत्मज्ञान हो जाए फिर मन में कभी न मिटने वाला आनंद सदा रहता है फिर आपको सुख के लिए कुछ करना, खाना, पीना, भोगना या मेहनत नहीं करनी पड़ती| सहज में सुख ह्रदय में सदा रहता है| फिर अपमान, दुःख, चिंताएं आपको नहीं छू सकतें| जो भी होता है बाह्य जगत में होता है| आप सदा आत्म पद में निर्लेप रहते हैं| फिर कर्म अकर्म भी आप पर लागू नहीं पड़ता, क्योंकि आप साक्षी भाव में रहते है सदा| ऐसी महिमा है आत्मज्ञान की| तो फिर क्यों बापूजी से यह छोड़कर कुछ और मांगना?


Q. आत्म साक्षात्कार किसे कहते है? 
A. आत्म साक्षात्कार एक स्थिति है जिसमे हम अपने आपको शरीर नहीं आत्म जानते है, फिर सुख-दुःख, मान-अपमान के थपेड़े नहीं लगते, मन परम विश्रांति में रहता है बापूजी भी यही चाहते है की उनके प्यारे उस परम पद को पाके सभी दुखों से सदा के लिए पार हो जायें, जब बापूजी भी यही देना चाहते और देने को तत्पर है तो फिर हम देर क्यों करें?

Q. ऐसा क्या है जिसको पाने के बाद दुखों की कोई दाल नहीं गलती?
A. आत्म-साक्षात्कार, आत्मज्ञान, ब्राह्मी स्थिति(साक्षात्कार के बाद की स्थिति) तत्व ज्ञान, ब्रह्म-ज्ञान सभी समानार्थी है

Q. इश्वर प्राप्ति माने क्या और कैसे हो?
A. भगवान् का साकार दर्शन करना इश्वर प्राप्ति नहीं, साकार रूप में तो रावण, कंस, दुर्योदनने भी दर्शन किए फिर भी पाप करते थे और नीर-दुःख नहीं हुए अर्जुन को भी जब भगवान् ने आत्म-ज्ञान कराया तब अर्जुन का शोक नाश हुआ भगवान् को तत्व-आत्म रूप से जानना आत्म ज्ञान/साक्षात्कार होना इश्वर प्राप्ति है

Q. दुःख का कारण और मूल क्या है?
A. दुःख पूर्व के पाप कर्म और अज्ञान के कारण होता है अगर आपने स्वरुप का ज्ञान हो जाय और अपने असली रुप्प में को जान ले के में शारीर नहीं आत्मा हूँ तो कितना भी बड़ा दुःख/अपमान आ जाय वह आपको दुखी नहीं कर पायगा क्योंकि आप अपने असल रूप में स्थित होंकर साक्षी होंगे बोक्ता नहीं


Q. बापूजी के अनुसार हमारे जीवन का उदेश्य क्या होना चाहिए?
A. आत्म क्षात्कार/ब्राह्मी स्थिति(आत्म ज्ञान होने के बाद की स्थिति)|
गुरुगीता में शिव पार्वती सवांद से, शिवजी ने पार्वतीजी से कहा "हे प्रिये, वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास आदि, मंत्र, यन्त्र, मोहन, उच्चाटन आदि विद्या, शैव, शाक्त, आगम और अन्य सर्व मतमतांतर, ये सब बातें गुरुतत्व को जाने बिना भ्रांत चित्वाले जीवों को पथभ्रष्ट करने वाली है और जप, तप, व्रत, तीर्थ, यज्ञ, दान, ये सब व्यर्थ हो जाते हैं (गुरुगीता श्लोक न. १९, २०, २१)

Q. बापूजी क्या चाहते है हमारे लिए?
A. बापूजी चाहते है की हम सब जल्द से जल्द आत्म साक्षात्कार करके ब्राह्मी स्थिति में टिक जायें और सभी दुखों से सदा के लिए मुक्त हो जायें, बाकी सभ उपाय Temporary है एक यही Permanent Solution है सभी दुखो से मुक्त होने का | ["हे सुमुखी, आत्मा मेंगुरुबुधि के सिवाय अन्य कुछ भी सत्य नहीं है, इसलिए इस आत्मज्ञान को प्राप्त करने के लिए बुधीमानो को प्रयत्न करना चाहिए" (गुरुगीता श्.  २२) ]

Q. सभी सेवाओ, साधनाओ, यज्ञो, सत्कर्मो, पुण्यों का परम फल क्या है?
A. आत्म साक्षात्कार, इससे उचा फल-लाभ पृथ्वी पर दुसरा कोई नहीं, इस की बराबरी दूसरा कोई लाभ नहीं कर सकता| [शिव की पूजा में रत हो या विष्णु की पूजा में रत हो, परन्तु गुरुतत्व के ज्ञान से रहित हो तो सब व्यर्थ है (गुरुगीता श्लोक न. ९९)]

Q. सारे सत्संगो का सार क्या है?
A. सभी सत्संगो का सार यही है की हम उस परम पद(आत्म पद) को पालें, उस इतने उचे पद को छोड़ कर क्यों दो कोडी के सुख के पीछे बागना, एक बार आत्म साक्षात्कार हो जाए फिर दुःख टिकेगा नहीं और सुख मिटेगा नहीं, इस्सिलिये पाने योग्य सिर्फ यही है बाकी सब धोखा ही है, बाकी जो भी मिला छुट जाएगा, इसीलिए अपनी बुधी का उपयोग करें और आत्मज्ञान के रास्ते पर चल पड़ें [हे देवी! स्वरुप के ज्ञान के बिना किये हुए  जप-तपादी सब कुछ नहीं किये हुए के बराबर हैं, बालक के बकवाद के सामान (व्यर्थ) हैं (गुरुगीता श्लोक न. १८८)]

Q. कैसे हो आत्म साक्षात्कार (आत्मज्ञान, ब्रह्म ज्ञान, ब्राह्मीस्थिति, तत्व ज्ञान)? 

A. बिना सेवा के गुरुकृपा नहीं पचेगी, मुफ्त का माल हजम नहीं होगा, और बिना गुरुकृपा के आत्म ज्ञान/साक्षात्कार नहीं हो सकता, सेवा ढुंढये बापूजी कहते है हम में जो भी योग्यता है उसे सेवा में लगा देना है बस, नया कुछनहीं करना, सीखना सेवा से ही पात्रता विकसित होगी और तभी हम अधिकारी बनेगे, बिना सेवा के किसी का विकास नहीं होता

Q. कब होगा आत्म साक्षात्कार?
A. तड़प जीतनी ज्यादा समय उतना ही कम! आप आत्म साक्षात्कार को ईमानदारी से उदेश्य बनाकर साक्षात्कार के रस्ते दृडता से चलें बाकी बापूजी संभाल लेंगे! जहां चाह वहाँ राह, आप चलिए तो सही देर-सवेर होही जाएगा, बापूजी भी यही देना चाहते है हमें, जैसे बालक पिता की ऊँगली पकड़ कर चलता है ऐसे ही चलना है बापूजी आपको लक्ष्य तक पहोचा देंगे

Q. बापूजी को आत्म साक्षात्कार कब हुआ?
A. बापूजी जब २३ साल की उम्र में मुंबई गए थे ४० दिन के अनुष्ठान के बाद तब स्वामी लीलाशाहजीने उनपर कृपा दृष्टी दाल कर उनके ह्रदय में आत्मज्ञान प्रगट कर बापूजी को सदा के लिय मुक्त कर दिया

Q. दीक्षा लिए इतना समय होगया अभी तक साक्षात्कार क्यों नहीं हुआ?
A. आत्म-साक्षात्कार तब होगा जब हमारा ह्रदय शुद्ध होगा, अशुद्ध ह्रदय में यह ज्ञान नहीं ठहरता और गुरुकृपा पचाने की पात्रता होगी तब पचेगा, बस ह्रदय की शुधी, पात्रता और ईमानदारी से उदेश्य होना चाहिए

Q. कैसे हो ह्रदय की शुधी?
A. सेवा और साधना से ह्रदय शुद्ध होगा और अन्तःकरण का निर्माण होगा तभी यह ज्ञान ह्रदय में टिकेगा

Q. कोई Short-Cut है क्या?
A. अगर बापूजी के सीद्दे सानिद्य्य में रहकर साधना करे फिर तो कहना ही क्या, फिरतो जल्द ही काम बन सकता है और बापूजी भी ऐसे ही पात्र ढूढ़ते हैं जो जल्दही यह ज्ञान पा सकें और बापूजी उन्हें अपने गुरुदेव का प्रसाद दे सकें

अब आपकी कभी न मिटने वाले सुख की खोज और सभी दुखो से सदा के लिए मुक्त होने की खोज समाप्त हुई, अब आपको केवल आत्म साक्षात्कार कर इसे अपने जीवन में उत्तारना है| ध्यान रहे इस पत्रिका से हम आप पर आत्म साक्षातकार करने का कोई दबाव या बंदन नहीं डालना चाहते आप अपनी मर्जी के मालिक हो आपकी जो इच्छा हो सो करें, पर भगवान को दोष न दें की उन्होंने सिर्फ दुःख ही बनाए है सुख कहाँ है, क्या है वह आपको वास्तव में पता ही नहीं था अब पता चलग या है बस पा लो!
                          -पूज्य संत श्री आसारामजी बापू जी के सत्संग प्रवचन से

ध्यान रहे आत्म पद इस ब्रह्माण्ड में सबसे उचा पद है यह किसी ऐरे गैर्रे नथू थैर्रे के लिए नहीं है, इसे तो कोई सत पात्र सत शिष्य ही पा सकता है, सभी गुरुभाई-बहनों तक यह सन्देश पहोचाना है इसीलिए आप भी ऐसी 100 पत्रिकाएं अपनी भाषा में बनवाकर दुसरो को इश्वर के रस्ते लगाने की सेवा जरुर करें और दुसरो को भी यह सेवा करने के लिए प्रेरित करें ध्यान रहे २-३ पड़ने के बाद इस पत्रिका अपने पास ना रखें फिर अपने प्रियजनों, मित्रों, दुसरे गुरु भाई-बहनॉ तक पहोचादें
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